विज्ञापनों का युग । विज्ञापन पर निबंध | vigyapan ka yug par nibandh | vigyapan ka mahattva
विज्ञापनों का युग । विज्ञापन पर निबंध | vigyapan ka yug par nibandh | vigyapan ka mahattva,निबंध लेखन - विज्ञापनों का युग,vigyapan par nibandh,वर्तमा
निबंध लेखन - विज्ञापनों का युग
विज्ञापनों का युग । विज्ञापन पर निबंध | vigyapan ka yug par nibandh | vigyapan ka mahattva । vigyapan par nibandh
विज्ञापनों का युग
वर्तमान युग विज्ञापनों का युग है। दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली हर वस्तु का विज्ञापन देखा जा सकता है। हम विज्ञापनों की दुनिया में सोते, जागते, खाते-पीते, उठते-बैठते हैं।
प्रातः उठकर दाँत साफ़ करने हों, तो विज्ञापन अनेक दंतमंजन तथा टूथपेस्ट हमारे सामने रख देता है। नहाकर रंग गोरा करना है या त्वचा को कोमल बनाना है, तो अनेक साबुन तथा क्रीम या बॉडी लोशन आँखों के सामने आने लगते हैं।
सिर में दर्द हो, तो औषधियों के रामबान आ जाएँगे की खाने की जल्दी हो, तो दो मिनट में खाना पकाना भी विज्ञापन सिखा देंगे। अब ऑफिस जाने में देरी होगी, यह तो सोचिए हो क्योंकि विज्ञापनों में दिखाई गई साइकिल, हवाई जहाज को भी मात दे देती हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि विज्ञापनों की रंगीन दुनिया हमारी दैनिक दिनचर्या को अत्यधिक प्रभावित करती है। हमारे मन मस्तिष्क पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता। है।
व्यापारी वर्ग द्वारा व्यापार को बढ़ाने तथा वस्तु की अधिकाधिक बिक्री करने के लिए उसका प्रचार करना ही विज्ञापन है। वस्तुओं का विज्ञापन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि अनेक साधनों द्वारा किया जाता है। इसके अनेक लाभ हैं। लोगों को बाजार में उपलब्ध प्रत्येक नई वस्तु के विषय में घर बैठे ही जानकारी मिल जाती है। कंपनियों में प्रतियोगिता की भावना आती है, जिसका लाभ ग्राहक को होता है। उसे सही कीमत में अच्छी किस्म को वस्तु प्राप्त होती है। जैसे- आजकल पोलियो रोकने के लिए सरकार द्वारा दूरदर्शन, रेडियो तथा समाचार पत्रों में 'एक बूंद जिंदगी की' जैसे समाजोपयोगी विज्ञापन दिए जाते हैं, जिससे भविष्य में पोलियो जैसी भयानक बीमारी से राष्ट्र को मुक्त रखा जा सकता है।
व्यापारी वर्ग द्वारा व्यापार को बढ़ाने तथा वस्तु की अधिकाधिक बिक्री करने के लिए उसका प्रचार करना ही विज्ञापन है। वस्तुओं का विज्ञापन समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि अनेक साधनों द्वारा किया जाता है। इसके अनेक लाभ हैं। लोगों को बाजार में उपलब्ध प्रत्येक नई वस्तु के विषय में घर बैठे ही जानकारी मिल जाती है। कंपनियों में प्रतियोगिता की भावना आती है, जिसका लाभ ग्राहक को होता है। उसे सही कीमत में अच्छी किस्म को वस्तु प्राप्त होती है। जैसे- आजकल पोलियो रोकने के लिए सरकार द्वारा दूरदर्शन, रेडियो तथा समाचार पत्रों में 'एक बूंद जिंदगी की' जैसे समाजोपयोगी विज्ञापन दिए जाते हैं, जिससे भविष्य में पोलियो जैसी भयानक बीमारी से राष्ट्र को मुक्त रखा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त शिक्षा को बढ़ावा देकर जन-जन को शिक्षित करने, नशे की हानियाँ
बताकर नशा न करने, कृषि में उपयोगी खाद, बीज आदि के लाभकारी विज्ञापनों से बहुत लाभ होता है।
विज्ञापनों के इस युग में हमें सावधान रहने की भी आवश्यकता है। कई बार गलत वस्तुओं को विज्ञापन में इतना लाभकारी बताया जाता है कि पाठक या श्रोता उस विज्ञापन से प्रभावित होकर वस्तु खरीद लाता है। कहते हैं हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती। यह आवश्यक नहीं कि आप विज्ञापन में दिखाए गोरेपन के आधार पर सचमुच सप्ताह भर में क्रीम लगाने से गोरे हो जाएँगे टूथपेस्ट से आपके दाँत मोतियों की भाँति चमक उठगे ग्राहक का कर्तव्य है कि वह विज्ञापनों को दुनिया के रंगीन जाल में न उलझकर अपनी आवश्यकता के अनुरूप उचित वस्तु ही खरीदें। बच्चे नित्य नई वस्तुओं को टी.वी. पर विज्ञापन में देख माता-पिता से उन्हें खरीदकर देने की जिद करते हैं, जो गलत है।
विज्ञापनों में हमारी संस्कृति के साथ भी अनेक बार खिलवाड़ किया जाता है। यहाँ तक कि हमारे ऋषि-मुनियों को तथा पौराणिक पात्रों को भी विज्ञापनों का आधार बनाया जा रहा है, जो गलत है। ऋषियों तथा पौराणिक पात्रों का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है। इनका अपमान करना अपनी संस्कृति तथा पुराण ग्रंथों का मजाक उड़ाना है, जो
अनुचित और घृणित कार्य है।
उत्पादकों को अपनी वस्तु का विज्ञापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि विज्ञापन के लिए वे काल्पनिक कथाओं को आधार न बनाएँ। विज्ञापन में भी उन्हें मर्यादाएँ नहीं लाँघनी चाहिए। यदि ऐसा होता है तो पाठक और श्रोता उनका विरोध करें। समाधान स्वतः ही हो जाएगा।
बताकर नशा न करने, कृषि में उपयोगी खाद, बीज आदि के लाभकारी विज्ञापनों से बहुत लाभ होता है।
विज्ञापनों के इस युग में हमें सावधान रहने की भी आवश्यकता है। कई बार गलत वस्तुओं को विज्ञापन में इतना लाभकारी बताया जाता है कि पाठक या श्रोता उस विज्ञापन से प्रभावित होकर वस्तु खरीद लाता है। कहते हैं हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती। यह आवश्यक नहीं कि आप विज्ञापन में दिखाए गोरेपन के आधार पर सचमुच सप्ताह भर में क्रीम लगाने से गोरे हो जाएँगे टूथपेस्ट से आपके दाँत मोतियों की भाँति चमक उठगे ग्राहक का कर्तव्य है कि वह विज्ञापनों को दुनिया के रंगीन जाल में न उलझकर अपनी आवश्यकता के अनुरूप उचित वस्तु ही खरीदें। बच्चे नित्य नई वस्तुओं को टी.वी. पर विज्ञापन में देख माता-पिता से उन्हें खरीदकर देने की जिद करते हैं, जो गलत है।
विज्ञापनों में हमारी संस्कृति के साथ भी अनेक बार खिलवाड़ किया जाता है। यहाँ तक कि हमारे ऋषि-मुनियों को तथा पौराणिक पात्रों को भी विज्ञापनों का आधार बनाया जा रहा है, जो गलत है। ऋषियों तथा पौराणिक पात्रों का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है। इनका अपमान करना अपनी संस्कृति तथा पुराण ग्रंथों का मजाक उड़ाना है, जो
अनुचित और घृणित कार्य है।
उत्पादकों को अपनी वस्तु का विज्ञापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि विज्ञापन के लिए वे काल्पनिक कथाओं को आधार न बनाएँ। विज्ञापन में भी उन्हें मर्यादाएँ नहीं लाँघनी चाहिए। यदि ऐसा होता है तो पाठक और श्रोता उनका विरोध करें। समाधान स्वतः ही हो जाएगा।